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गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

मृत्यु

पुराणों मे एक कहानी आई है। कहानी बहुत ही रोचक है :-
भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ के साथ भगवान शिव से मिलने हिमालय की ओर चल दिए।
जब भगवान विष्णु हिमालय पर पहुचे तो उन्होंने गरुड़ को बाहर रुकने के लिए कहा और भगवान शिव से मिलने के लिए अन्दर चले गए।
गरुड़ ने देखा की पास के ही पहाड़ पर एक पक्षी दर्द से तड़प रहा है। कुछ समय के बाद यमराज जी आते हुवे दिखे और उस पक्षी को घूरकर देखा और कुछ सोचने लगे और फिर भगवान शिव से मिलने के लिए वो भी द्वार से अन्दर चले गए।
अब गरुड़ ने सारी बात समझ ली। गरुड़ समझ गया की यमराज इस पक्षी की जान लेने के लिए आये है।
गरुड़ ने सोचा -शायद अभी इसकी जिन्दगी मे कुछ समय बाकी है इसलिए यमराज फिर से कुछ समय बाद आयेंगे। इस बीच क्यों न इस पक्षी को कही दूर ऐसी जगह पर छोड़ आया जाय, हो सकता है इससे इस पक्षी की जान बच जाये ।
गरुड़ ने पक्षी को उठाकर पवन से भी तेज गति से उड़कर हिमालय से बहुत ही दूर किसी ओर पर्वत पर छोड़ कर वापिस हिमालय आ गया।
जब यमराज जी भगवान शिव से वार्तालाप कर द्वार से बाहर निकले तो पक्षी को वहां से नदारद पाया ।
यमराज ने गरुड़ से पूछा - अभी अभी यहाँ पर एक पक्षी था क्या तुमने उसको देखा था ????????
गरुड़ ने कहा - क्षमा कीजियेगा , पर मुझे मालुम था आप उस पक्षी के प्राण लेने आये हैं , इसलिए मैंने पक्षी को कही दूर पर्वत पर पंहुचा दिया है।
यमराज जी ने कहा - धन्यवाद आपका , आपने मेरा काम आसान कर दिया। उस पक्षी की मृत्यु यहाँ से बहुत दूर किसी पर्वत पर लिखी हुई थी, मैं यह सोच सोच कर परेशान हो रहा था की पक्षी तो यहाँ है पर इसकी मृत्यु तो कही ओर लिखी हुई है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।


सीख : मृत्यु निश्चित है, परमात्मा ने सभी को स्वांस भी गिन कर दी है, न एक स्वांस कम , न एक स्वांस ज्यादा