यह ब्लॉग सभी प्रकार के क्षेत्रो के रंग दिखलाने का प्रयास करेगा, इसमें कंप्यूटर जगत से लेकर सामाजिक जगत तक हर पहलू को छूने का प्रयास हमारा रहेगा.

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

हम कहाँ पर है ?

आज हमें विचार करना चाहिए कि हम किस प्रकार का जीवन जी रहे है, क्या यह राष्ट्र , समाज और धर्म के लिए सही है , आइये हम इन सब बातों का विश्लेष्ण करे

१ हम हर जगह कचरा फेकते है, यदि हम रोड पर चल रहे होते है तो वहाँ पर, कही पर कचरा फेक देते है। बिल्डिंग मे रहने वाले नीचे कचरा फेक देते है , अन्य विकसित देशो मे वहाँ के लोग सिर्फ कचरा पेटी मे ही कचरा फेकते हैं ।

२ हम भारतीय राजनीती मे भावुक होकर वोट देते हैं और नतीजा सामने है कि मलेशिया जैसा देश जो १९४५ मे आजाद हुआ था, आज हमसे कई गुना आगे है। मलेशिया तो एक उदाहरण है , ऐसे कई और देश हैं।

३ हिन्दी राष्ट्रभाषा और राजभाषा है पर हम जितना हो सके इंग्लिश का ही प्रयोग करते है। अगर हमारे मोबाइल मे कुछ समस्या हो तो हम कॉल सेंटर पर हिन्दी कि अपेछा इंग्लिश मे ही बात करना ज्यादा पसंद करते हैं। ये फिल्मी कलाकार हिन्दी फिल्मो से नाम और पैसा कमाते है, पर जब साछात्कार (इंटरव्यू) का समय आता है तब इंग्लिश का मोह छोड़ नही पाते। चीन, जापान, जर्मनी , पोलैंड , फ्रांस और कई और देश भी अपनी भाषा को महत्व देकर उसी के द्वारा अपना विकास कर रहे हैं।

४ हम रोड पर गाडियाँ चलाते है और बेवजह हार्न बजाते हैं , ट्राफिक जाम होने पर लगातार हार्न बजाते हैं। विकसित देशो मे इस तरह हार्न नही बजाया जाता , सिर्फ आपातकालीन समय मे ही हार्न बजाया जाता है। ध्वनी प्रदुषण बढने का यह एक मुख्य कारण है जो कई प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों को जनम देता है.

५ हम प्रदुषण बढ़ाने का कार्य करते हैं , भगवान कि पूजा करने के बाद अगरबती की राख, अन्य पूजा सामग्री नदियों मे प्रवाहित करते हैं जिससे नदियों मे प्रदुषण फेलता है। क्या इन चीजों को कचरा पेटी मे डालने से भगवान नाराज हो जायेंगे ?ऐसी कई बाते है, जिनको हमे समझना पड़ेगा।

हम कह सकते है कि हमारे करने से क्या होगा, इस भारत वर्ष में करोडो लोग रहते है, एक हमारे ठीक चलने से क्या होगा, ऐसा नहीं है, बूंद बूंद से सागर बनता है, अगर एक व्यक्ति ये कार्य करे तो समाज पर आज न कल असर होगा ही. इसलिए आज से ही इस प्रकार के और बहुत सारे ऐसे अन्य कार्य जो राष्ट्र, देश और धर्म के लिए हितकर हो हमें करते रहना चाहिए, तभी हम भारत को परम वैभव पर ले जा सकेंगे

रविवार, 5 जुलाई 2009

गुरु पूर्णिमा

अभी ७ तारीख को गुरु पूर्णिमा है , जिसे व्यास पूर्णिमा भी कहते है।

गुरु का हमारे समाज मे एक अलग महत्व है। अगर हम इतिहास मे दृष्टी डाले तो हर महान व्यक्ति के पीछे उनके गुरु का ही हाथ रहा है। स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका मे हिंदुत्व के झंडे गाड दिए उनके गुरु थे स्वामी रामकृष्ण परमहंस , छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना की थी , उनके धार्मिक गुरु थे समर्थ स्वामी रामदास और शस्त्र शिक्षा सिखाने वाले गुरु थे दादोजी कोंडदेव , मीराबाई के गुरु थे संत रैदास।

आज के युग मे भी गुरु को विशेष स्थान प्राप्त है। संत आशाराम बापू , मोरारी बापू, सत्य साईं बाबा, श्री श्री रवि शंकर जी ऐसे न जाने कितने गुरु भारत वर्ष मे अपनी ज्ञान की किरणे बिखेर रहें है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परम पवित्र भगवा ध्वज को गुरु मानता है, क्योकि व्यक्ति चाहे कितना भी महान क्यों न हो तो भी वह पूर्ण नही रहता , कही न कही उसमे अवगुण होता है या आ सकता है। व्यक्ति नाशवान होता है , कभी न कभी उसकी मृत्यु होगी , लेकिन भगवा ध्वज की कभी मृत्यु नही होगी और ना ही कभी उसमे अवगुण आएगा, और भगवा ध्वज वीरता , साहस और त्याग के संकेत देता है।

समाज मे गुरु का इतना महत्व है इसलिए कबीर जी कहते है:-
गुरु गोबिंद दोनों खड़े , काके लांगू पाय ,
बलिहारी गुरु आपनों , जो गोबिंद दियो बाते
कबीर जी कहते है की मेरे सामने गुरु और भगवान दोनों खड़े है, लेकिन मे पहले गुरु के पैर पडूंगा , क्योकि गुरु ने ही बताया की भगवान का रास्ता क्या है।

गुरु का शाब्दिक अर्थ है, गु मतलब अंधकार और रु मतलब प्रकाश , जो अंधकार से प्रकाश की और ले जाए वो गुरु है।

इस धरती पर अगर भगवान ने भी अवतार का रूप लिया तो उन्हें भी गुरु करना ही पड़ा, जैसे राम के गुरु वसिस्ट और कृष्ण के गुरु संदीपनी जी ।

गुरु शिष्य मे सादगी और कुशल व्यव्हार देखना पसंद करता है।