अभी ७ तारीख को गुरु पूर्णिमा है , जिसे व्यास पूर्णिमा भी कहते है।
गुरु का हमारे समाज मे एक अलग महत्व है। अगर हम इतिहास मे दृष्टी डाले तो हर महान व्यक्ति के पीछे उनके गुरु का ही हाथ रहा है। स्वामी विवेकानंद जी ने अमेरिका मे हिंदुत्व के झंडे गाड दिए उनके गुरु थे स्वामी रामकृष्ण परमहंस , छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना की थी , उनके धार्मिक गुरु थे समर्थ स्वामी रामदास और शस्त्र शिक्षा सिखाने वाले गुरु थे दादोजी कोंडदेव , मीराबाई के गुरु थे संत रैदास।
आज के युग मे भी गुरु को विशेष स्थान प्राप्त है। संत आशाराम बापू , मोरारी बापू, सत्य साईं बाबा, श्री श्री रवि शंकर जी ऐसे न जाने कितने गुरु भारत वर्ष मे अपनी ज्ञान की किरणे बिखेर रहें है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परम पवित्र भगवा ध्वज को गुरु मानता है, क्योकि व्यक्ति चाहे कितना भी महान क्यों न हो तो भी वह पूर्ण नही रहता , कही न कही उसमे अवगुण होता है या आ सकता है। व्यक्ति नाशवान होता है , कभी न कभी उसकी मृत्यु होगी , लेकिन भगवा ध्वज की कभी मृत्यु नही होगी और ना ही कभी उसमे अवगुण आएगा, और भगवा ध्वज वीरता , साहस और त्याग के संकेत देता है।
समाज मे गुरु का इतना महत्व है इसलिए कबीर जी कहते है:-
गुरु गोबिंद दोनों खड़े , काके लांगू पाय ,
बलिहारी गुरु आपनों , जो गोबिंद दियो बाते
कबीर जी कहते है की मेरे सामने गुरु और भगवान दोनों खड़े है, लेकिन मे पहले गुरु के पैर पडूंगा , क्योकि गुरु ने ही बताया की भगवान का रास्ता क्या है।
गुरु का शाब्दिक अर्थ है, गु मतलब अंधकार और रु मतलब प्रकाश , जो अंधकार से प्रकाश की और ले जाए वो गुरु है।
इस धरती पर अगर भगवान ने भी अवतार का रूप लिया तो उन्हें भी गुरु करना ही पड़ा, जैसे राम के गुरु वसिस्ट और कृष्ण के गुरु संदीपनी जी ।
गुरु शिष्य मे सादगी और कुशल व्यव्हार देखना पसंद करता है।
यह ब्लॉग सभी प्रकार के क्षेत्रो के रंग दिखलाने का प्रयास करेगा, इसमें कंप्यूटर जगत से लेकर सामाजिक जगत तक हर पहलू को छूने का प्रयास हमारा रहेगा.
रविवार, 5 जुलाई 2009
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